विक्रम सम्बत -मिती सेवा शुल्क - खंडेला नगर में सूर्यवंशी रजाओं में चौहान जाती के राजा खड्गलसेण राज्य करते थे | एक समय राजा ने भू-देव जगतगुरु ब्राह्मणों को बड़े आदर पुर्वक अपने मन्दिर में भोजन कराकर उन्हें द्रव्य आदि अर्पण किये तब ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन ! तेरा मन वांछित वरदान सिद्ध हो जाय, तब राजन बोला - हे महाराज मुझे पुत्र की वांछना है - तब ब्राह्मणों ने कहा -हे राजन - तू शिव- शक्ति की सेवा कर, तेरे चक्रवर्ती पुत्र बड़ा बलशाली और बुद्धिमान होगा लेकिन उसे सोलह साल तक उत्तर दिशा में मत जाने देना और न ही सूर्यकुंड में स्नान करने देना तथा न ही ब्राह्मणों से द्वेष करने देना | अन्यथा इसी देह से उसका पुर्नजन्म हो जायेगा| राजा ने वचन दिया की ब्रह्मण देवताओं में ऐसा नहीं करने दूंगा | तब ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया , और रजा ने ब्राह्मणों को दान दक्षिण देकर विदा किया | ब्राह्मन अपने -अपने स्थानों पर चले गये |
राजा खडागलसेण की चौबीस रानियाँ थी , उनमें से रानी चम्पावती के पुत्र हुआ | राजपुत्र का नाम सुजान रखा गया | राजपुत्र वास्तव में महाबलशाली बुद्धिमान था | उसने बारह वर्ष की आयु में ही चौदह विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया | राजा बड़ा प्रसन्ना हुआ | वह शस्त्र विद्या में भी निपुण हो गया | लोग राज पुत्र से डरने लगे |
उसी समय जैन धर्म को मानाने वाले आये और उन्होंने राजपुत्र को जैन धर्मोपदेश दिया जिससे राजपुत्र प्रभावित हुआ | और सब मत के विरुद्ध हो गया , ब्राह्मणों से द्वेष करने लगा | राजपुत्र ने अपने सम्पूर्ण राज्य में शिवमूर्ति का खण्डन कर जैन मन्दिर स्थापित कीए | केवल उत्तर दिशा ही शेष रह गई जिस ओर जाने से राजा ने मना कर रखा था | लेकिन राजपुत्र कब मानने वाला था , वह ७२ उमरावों सहित उत्तर दिशा की ओर रवाना हो गया , वहाँ जाकर राजपुत्र ने देखा की
सूर्यकुण्ड पर ६ रुशिस्वर पराशर, गौतम, भरद्वाज आदि यज्ञ करा रहें हैं| राजपुत्र ने क्रोधित होकर अपने साथ में आए उमरावों को आदेश दिया कि इन ब्राह्मणों को मारो और यज्ञ सामग्री नष्ट कर दो | यह सुन ब्राह्मणों ने सोचा कि यह राक्षस आ गये और उन्होंने राजपुत्र का ख्याल न करके श्राप दे दिया की अबुधियों, तुम जड़ - पाषाणवत हो जाओ ७२ उमराव और | ७२ उमराव और राजपुत्र घोड़ो सहित पाषाणवत हो गए | जब रजा ने यह समाचार सुना तो राजा ने प्राण छोड़ दिए | जब रजा के संग सोलह रानियाँ सती हो गई | और संपूर्ण राज्य को राजवाडो ने दबा लिया तब राजपुत्र की स्त्री और बहत्तर उमरावों की स्त्रियाँ रूदन करती हुई ब्राह्मणों के चरणों में आकर गिर पड़ी तब ब्राह्मणों ने उपदेश दिया और एक गुफा बतला दी कि तुम्हारे पति शिव-पार्वती के वरदान से पुन शुधबुद्धि हो जायेंगे | तब वे सब शिव-पार्वती का ज्ञमरण करने लगी | ब्राह्मणों के कहे अनुसार वहाँ शिव-पार्वती आये, जब सब स्त्रियाँ पार्वती के पैर लगी तब पार्वती जी ने सौभाग्यवती हो,"चिरंजीव हो " ऐसा आशीर्वाद दिया तब राजपत्नी के साथ ७२ उमरावों की स्त्रियाँ हात जोड़कर कहने लगी - देवी वरदान सोच समझ कर दीजिये क्यु की हमारे पति तो ब्राह्मणों के श्राप से पत्थर हो गए | जब पारवती जी ने भगवान महादेव जी के चरणों में गिरकर प्रार्थना की तब ,महादेव जी राजपुत्र के साथ ७२ उमरावों को जाग्रत कर दिया | जब उन ७२ उमरावों ने शंकर जी को घेर लिया तब शंकर जी ने वरदान दिया की तुम क्षमावान हो | लेकिन राजपुत्र सुजन पार्वती का रूप देखकर लुभायमान हो गया , तब पार्वती जी ने उसे श्राप दे दिया |
जब ७२ उमरावों ने शंकर जी की प्रार्थना की तब महादेव जी ने कहा की तुम क्षत्रित्व एवं शस्त्र को छोड़कर वैश्य रूप धारण करो ,लेकिन हाथों की जड़ता के कारण शस्त्र नहीं छुटे | तब महादेव जी ने कहा की तुम सूर्यकुंड में स्नान करो तब सूर्यकुंड में स्नान करते ही शस्त्र छुट गए और तलवार लेखनी भलो से डाडि , डालो से तराजू बनकर उन्हें वैश्य पद मिल गया , जब इन उमरवों को वैश्य बना दिया तब ब्राह्मणों ने शंकर जी के सामने आकर प्रार्थना की कि हमारा यज्ञ कब संपूर्ण होगा ? क्यूंकि इन्होनें तो विद्वंस किया है | तब शंकर जी बोले - तुम इन्हें शिक्षा दो जिससे ये स्वधर्म से चलने लगेंगे | इस प्रकार शंकर जी अंतध्यार्न हो गए और वे ७२ उमरावों ६ रुशिश्वारो के चरणों में गिर पड़े | एक -एक रूशी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया इस प्रकार से हर एक रूशी के १२ -१२ शिष्य हो गए | वे ही अब यजमान कहलाये जाते है |
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